मुक़द्दर गुमशुदा
और
बशर ग़मज़दा
इत्तेफ़ाक़ भी नही होते
आजकल
पूरे ईमान से
कट रही है ज़िन्दगी
इत्मीनान से!
खुद से जो कभी मिला सका, तो बताऊँगा के कौन हूँ. तब तलक मत पूछिए ,चुपचाप हूँ बस मौन हूँ.
मुक़द्दर गुमशुदा
और
बशर ग़मज़दा
इत्तेफ़ाक़ भी नही होते
आजकल
पूरे ईमान से
कट रही है ज़िन्दगी
इत्मीनान से!
काम की घुड़ दौड़ में
ऐसे भागता रहा हूँ कि
खयालात, ज़ज्बात,
लफ्ज़ – ओ – अल्फ़ाज़
और “तुम”
बस सब मेरी
फ़ुरसत के ही मोहताज़ हैं!
कल शाम दोस्तों से मिला
उसकी भी बातें चल निकली
तरस आया मुझे उसके हालात पर
सुना के वो आजकल
शर्मसार,
बेज़ार और
बीमार–सी है
अपने अस्तित्व पर पछताती हुई
उस पर हुए सितम का
कोई हिसाब नहीं देता
मैं भी अब उससे
नज़रें ही चुरा सकता हूँ
उससे कुर्बत रखने की
अब मुझे फुर्सत नहीं
हम दोनों ही मज़बूर हैं
यही परिणति है
मैं हूँ आम आदमी
उसका नाम
राजनीति है.